नारी शक्ति का दूसरा अंस




माँ काली यानि भगवान शीव की पत्नी माँ पार्वती का एक रूप, जिनके पति महाकाल हो उनकी पत्नी भी तो महाकाली ही हुई ना. महाकाली यानि काल और काल यानि अंतिम समय,किसीका अंतिम समय तभी निकट आते है जब आपके कर्म में पुन्य से अधिक पाप होते है.

पुन्य : आप के माध्यम से किसीका अच्छा हो.
पाप : आप के माध्यम से किसीका बुरा हो.

तो सोचिये अगर स्वयं माँ काली को अवतरित होना पड़े तो पाप और अधर्म कितने अधिक होंगे.सही सोचा आपने जब देवलोक में असुरो का आतंक बढ़ रहा था और धीरे धीरे अधर्म ओर सत्य ख़तम हो रहा था तब माँ काली के रूप में माँ पार्वती प्रगट हुई.पूरा शरीर काले रंग का, जो की भगवान् शिव के कंठ में जो हलाहल जहर था उसकी वजह से था,बाल बिखरे हुए,हाथ में वज्र,गले में असुरोकी खोपडिया की माला ओर आँखे इतनी लाल के जेसे अंगारे पनप रहे हो.जो बी पेहली दफा देखे वो काँप उठे अभी तो उनकी तीसरी आँख बंध थी. सामने रक्तबीज नामक राक्षस या कहे असुर खड़ा था जिसको ब्रह्मा का वरदान प्राप्त हुआ था की अगर उसके शरीर से एक बी रक्त की बूंद जमीन पर गिरे तो एक और रक्तबीज जन्म लेगा.बोहत सालो तक ये युद्ध चला जिसकी वजह से माँ काली को अधिक क्रोध आया जो पहले से काफी भयानक था,और अंत में एक हाथ में वज्र,एक हाथ में कटोरा लिए बिजली से अधिक तेजी से माँ काली ने रक्तबीज का अंत किया और एक बी खून का कतरा जमीन पे नहीं गिरने दिया. फिर भी माँ काली का क्रोध शांत नहीं हुआ उनके इस क्रोध की अग्नि में सब भस्म हो रहा था और किसीमे हिम्मत नहीं थी के माँ काली को रोक पाए. तभी भगवान शिव उनके आगे जमीन पे लेट गए तभी माँ काली ने क्रोध में गलती से उनपे पैर रख दिया और जब उन्हें ये ग्यात हुआ की उन्होंने अपने पति महाकाल के ऊपर ही पैर रख दिया तब उनकी जीभ बहार निकल गई और क्रोध शांत हो गया.

आज के युग में भी असुर और राक्षस हे,धर्म ख़तम हो रहा हे,सत्य से अधिक जूठ बोला जा रहा है ! देर किस बात की उठाइए अपना शस्त्र,जागृत कीजिये अपने एक और अंस माँ काली को,बनाइये ससक्त अपने आपको की जूठा और अधर्मी इन्सान काप उठे आपको देख के. और ये तभी हो पायेगा जब आप सत्य के साथ हो,धर्म की रक्षा कर रही हो अपने प्रियजनों की आगे ढाल बनके खडी हो.निर्भय हो यानि भयमुक हो,कब तक अपने आपको किसीके भरोसे छोड़ेंगे कुछ कर्म आपके भी है जो करने ही चाहिए, सत्य की राह हमेशा कठिन रेहती हे लेकिन असंभव नहीं हे उसे पार करना ही होगा.हर पुरुष में महाकाल है तो हर स्त्री में भी महाकाली है. और जब महाकाल और महाकाली एक होते हे तो दुनिया की कोई बुराई या कहे कितनी भी बड़ी कठ्नाय आये वो पार करही लेंगे और तभी तो सुरुआत होती है अर्धनारेस्वर की.


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